दांपत्य जीवन दिव्य पवित्र नहीं होगा तब तक दिव्य संतान उत्पन्न नहीं होगा- स्वामी दयानंद

मूलचन्द पेसवानी | 29 Sep 2022 12:34

दैनिक भीलवाड़ा न्यूज, शाहपुरा। माहेश्वरी भवन में आयोजित हो रहे श्रीमानस महोत्सव 2022 के चर्तुथ दिन गुरूवार को आयोजित कार्यक्रम में श्रीराम कथा में चतुर्थ दिवस पर बड़े ही धूमधाम के साथ श्री राम जन्म उत्सव मनाया गया। नवान्ह परायण पाठ में भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा है। इसके अलावा मानस आधारित प्रतियोगिता में भी लोगों का उत्साह बढ़ रहा है। आॅन लाइन प्रतियोगिताओं में तो शाहपुरा के अलावा बाहर से भी संभागी शामिल हो रहे है। 

श्रीराम कथा के दौरान व्यासपीठ से कथावाचक परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ स्वामी दयानंद सरस्वती लुधियाना ने कहा कि श्रीराम जी मर्यादा पुरुषोत्तम है। रामजी एक भी मर्यादा को भंग नहीं करते। सनातन धर्म का दर्शन करना हो तो रामजी का दर्शन करना होगा। सनातन धर्म ईश्वर का स्वरूप है धर्म साधन भी है और साध्य भी है। 

स्वामी दयानंद सरस्वती ने भगवान राम के जन्म का प्रसंग सुनाकर उपस्थित श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि जब-जब धरती पर आतंक अधर्म पापा चार दुराचार बढ़ता है तब तब प्रभु किसी भक्त की पुकार पर इस धरती पर अवतरित होते हैं। जब जब हो हि धर्म की हानि बाड़ी असुर अधम अभिमानी। भगवान बिल्कुल खड़े हैं आने को पर कोई दशरथ, कौशल्या, कश्यप, अदिति, नंद, यशोदा मिल जाए तो प्रभु तुरंत आ जाएंगे। इसलिए सभी संत महापुरुषों ने एक स्वर में कहा है कि अपने दांपत्य जीवन को सुधारें क्योंकि जब तक दांपत्य जीवन दिव्य पवित्र नहीं होगा तब तक दिव्य संतान उत्पन्न नहीं होगा। जिनका दांपत्य जीवन दिव्य होता है उन्हीं के घर महापुरुषों का जन्म होता है। 

उन्होंने जोर देकर कहा कि सनातन धर्म की विशिष्टता है की वहां साध्य और साधन दोनों एक ही है। धर्मानुकूल पवित्र जीवन कैसे व्यतीत किया जाय यह जगत को रामजी ने बताया। पुरूष का आचरण रामजी जैसा होना चाहिए और स्त्री का आचरण श्रीसीताजी जैसा होना चाहिए। श्री सीतारामजी मानव समाज के स्त्री पुरुषों को स्वधर्म का तत्व समझाने के लिए लीला करते है। आचरण रामजी जैसा होगा तो ही भक्ति सफल होगी। 

नवान्ह परायण में भक्तिमय माहौल



मानस महोत्सव के तहत चल रहे श्रीरामचरित मानस नवान्ह परायण पाठ के दौरान पूजा अर्चना के बाद पाठ वाचन में विभिन्न प्रसंगो का उद्रण करते हुए विवेचना होती है। प्रसिद्ध भागवत कथा वाचक महामंडलेश्वर जगदीशपुरी महाराज शक्करगढ़ के परम शिष्य संत महेंद्र चैतन्यी एवं संत नारायण चैतन्य के सानिध्य में चल रहे पाठ के दौरान संत महेंद्र चैतन्य ने कहा कि तीन वस्तुयें वाणी, पानी (जल), कर्माणी (आय) को कभी मत बिगाड़ना। आय का दशांश दान में देने से आय शुद्ध होती है। उन्होंने कथा को विस्तारित करते हुए कहा कि मानव मात्र को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि जल से भरे एक घड़े में हम एक-एक कर के पत्थर डालते जाते है तो धीरे-धीरे वह घड़ा कंकड़ से भर जाता है तथा जल से रिक्त हो जाता है। वैसे ही यदि हम अपने शरीर रूपी घड़े में, अंधकार रूपी कंकड़ ज्यादा डालेंगे तो हमारा शरीर शीलगुण रूपी पानी से रिक्त हो जायेगा। मानस मंडल अध्यक्ष रघुनाथ प्रसाद वैष्णव, सचिव शंकरलाल तोषनीवाल, उपाध्यक्ष अशोक त्रिपाठी व कोषाध्यक्ष श्यामसुंदर घीया की अगुवाई में शहर के विभिन्न प्रबुद्व जन आयोजन की सफलता सुनिश्चत करने के लिए जुटे हुए है।

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