जीवन का कुछ समय धर्म के खाते में भी जमा करें: आचार्य महाश्रमण

धर्मेन्द्र कोठारी | 23 Oct 2021 03:35

दैनिक भीलवाड़ा न्यूज़। राजस्थान राज्य का भीलवाड़ा नगर, जिसे वस्त्रनगरी से भी उपमित किया जा रहा है। वर्तमान में मानों धर्मनगरी की उपमा भी धारण किए हुए है। हो भी क्यों न जब भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने सैंकड़ों साधु-साध्वियों संग भीलवाड़ा नगरी में वर्ष 2021 का चतुर्मास कर रहे हैं। अब चतुर्मास सम्पन्नता की ओर है, लेकिन धर्म की फैलती सुवास श्रद्धालुओं को नित नई नवीन ऊर्जा के साथ जीवन को सुफल बनाने को प्रेरित कर रही है।

शनिवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जैन आगम ‘सूयगड़ो’ के माध्यम से लोगों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में धन का महत्त्व होता है। जीवन को चलाने में धन सहयोगी बनता है। धन है तो घर, भोजन, वाहन आदि में सुविधा प्राप्त हो सकती है, किन्तु यह अवबोध रहना चाहिए कि धन त्राण नहीं दे सकता। एक सीमा तक धन से सहयोग प्राप्त भले हो जाए, किन्तु त्राण नहीं प्राप्त हो सकता। आदमी को अपने कर्मों का फल स्वयं भोगना होता है। आदमी यह चिन्तन करे कि जीवन मृत्यु की ओर दौड़ रहा है। इसका अनुप्रेक्षण कर अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित करने का प्रयास करना चाहिए। बन्धन को तोड़ अपने जीवन का कुछ समय धर्म-ध्यान में लगाने का प्रयास करना चाहिए। ‘58 घड़ी जीव की, दो घड़ी शिव की।’ अर्थात् आदमी 58 घड़ी अपने जीवन पर भले लगाए किन्तु दो घड़ी धर्म-ध्यान के लिए भी नियोजित करने का प्रयास करे।

आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दो घड़ी (48 मिनट) में एक सामायिक आ जाती है। प्रतिदिन न हो सके तो शनिवार को सायं सात से आठ बजे के बीच सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी प्रतिदिन का अपना कुछ समय धर्म के खाते में डाल आत्म कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

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