14 व 15 को शाहपुरा में महाप्रभु रामचरणजी का जयंती उत्सव
दैनिक भीलवाड़ा न्यूज़, शाहपुरा। रामस्नेही संप्रदाय के संस्थापक आचार्य महाप्रभु स्वामी रामचरणजी महाराज का 302 जयंती उत्सव शाहपुरा के रामनिवास धाम में समारोह पूर्वक मनाया जायेगा। दो दिनी उत्सव की तैयारियां प्रांरभ कर दी है। रामनिवास धाम के भेख भंडारी संत शंभुराम रामस्नेही ने बताया शाहपुरा के सर्व रामस्नेही सत्संगजन के तत्वावधान में आयोजित होने वाले दो दिनी उत्सव के पहले दिन 14 फरवरी 22 को रात्रि में 8 बजे से 10 बजे रात्रि जागरण का कार्यक्रम होगा। इसमें संतों की मौजूदगी में सत्संगीजन रामद्वारा में महाप्रभु स्वामी रामचरणजी महाराज का गुणगान करेगें।
भेख भंडारी संत शंभुराम रामस्नेही ने बताया कि अगले दिन 15 फरवरी मंगलवार को रामद्वारा में प्रांतः 10.30 बजे तक 11 बजे तक वाणीजी का पाठ होगा तथा उसके बाद जयंती उत्सव समारोह व महाआरती का आयोजन संतों की मौजूदगी में होगा। कार्यक्रम में महाप्रभु स्वामी रामचरण कन्या विद्यापीठ की छात्राध्यापिकाओं तथा रामस्नेही संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुतियां दी जायेगी। भेख भंडारी संत शंभुराम रामस्नेही ने शाहपुरा में सभी रामस्नेही सत्संगीजन व अनुरागियों से दो दिनी उत्सव में पहुंच कर महाप्रभु रामचरणजी महाराज की जयंती पर उनका सुमिरन करने का आव्हान किया है। यह कार्यक्रम कोरोना गाइड लाइन की पालना करते हुए सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप ही आयोजित होगा। उल्लेखनीय है कि रामस्नेही सम्प्रदाय के जन्मदाता युगदृष्टा तपः पूत ब्रह्मनिष्ठ महापुरूष स्वामीजी श्री रामचरणजी महाराज का
प्राकट्य माघ शुक्ला चतुर्दशी शनिवार वि.सं. 1776 तदर्थ 24.02.1720 को सोडाग्राम (जिला टौंक) में हुआ। उनके पिता बखतराम एवं माता देऊ जी ने ऐसी विभूति को प्रकाश स्तम्भ के रूप में प्रगट कर सम्पूर्ण संसार में आध्यात्म का अखण्ड आलोक फेलाया। वि.सं. 1808 (सन् 1782) भादवा शुक्ला अष्टमी गुरूवार को ब्रह्म अशपश सतगुरू स्वामी कृपाराम महाराज के कृपापात्र बनकर गुरू दीक्षा से धन्य हो गये। 9 वर्ष की कठोर अनवरत् नाम साधना अनुभूतियों से वि.सं. 1817 (सन् 1761) में रामस्नेही सम्प्रदाय की गहरी नींव भीलवाड़ा की पावन धरती पर डाली। बारह वर्ष की प्रबलतम साधना के फलस्वरूप वि.सं. 1820 ( सन् 1764) में आपके मुखसे ज्ञान भक्तिवैराग्य रूपी त्रिपथगा पूज्य अणभैवाणी मुखरित हुई। 36397 छन्दों वाली वाणी, महाप्रभु का वांग्मय स्वरूप, आज जन-जन के हृदय में श्रद्धा के साथ विराजमान है।
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