विष पीना सीखो उगलना नहीं - मुनि अतुल कुमार

धर्मेन्द्र कोठारी | 03 Mar 2022 08:33

दैनिक भीलवाड़ा न्यूज़, भीलवाड़ा युग प्रधान आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन मुनि रविंद्र कुमार एवं मुनि अतुल कुमार तेरापंथ भवन पुर में विराज रहे हैं। सायंकालीन प्रवचन श्रृंखला में 'महाशिवरात्रि' पर मुनि अतुल कुमार ने कहा जब समुद्र मंथन हुआ तब अमृत भी निकला और जहर भी। जिन्होंने अमृत पीया वह देव बन गए और जिन्होंने जहर पीया वह महादेव बन गए। शिव ने जहर पी तो लिया पर गले के नीचे नहीं उतारा,शिव ने दुनिया को बहुत सुंदर आध्यात्मिक संदेश दिया कि विष पीना सीखो, उगलना नहीं दुनिया की बातों को गले के नीचे मत उतारना। मतलब दिल तक मत पहुंचने देना, आप जीवन के मंथन को जब भी करना शुरू करोगे तो सबसे पहले विष ही आपके हाथ लगेगा लेकिन याद रखना विष को पी मत जाना, विष को कंठ तक ही रखना जीवन में जो लोग साथ रहकर छल करें, धोखा दे, चुगली करें, बातों को गलत तरीके से किसी के सामने रखें, उनका साथ छोड़ देना ही बेहतर होता है।पति सुख को अकेला काट लेगा पर दुख में पत्नी को जरूर याद करेगा। और पत्नी दुख अकेली काट लेगी पर सुख में पति को जरूर याद करेगी। कभी-कभी जरूरत से ज्यादा सफाई देना हमारे दुख का कारण बन जाता है। कृष्णा ने राधा से पूछा, ऐसी एक जगह बताओ " जहां मैं नहीं हुं"राधा ने मुस्कुराते हुए कहा-मेरे नसीब में, राधा ने कृष्ण से पूछा, हमारा विवाह क्यों नहीं हुआ? कृष्ण मुस्कुराए और बोले -हे राधे! विवाह में दो लोग जरूरी होते हैं और हम तो 'एक 'है।

मुनि ने कहा साथ में रहना है तो सहना है यही अंतिम सत्य है। जिस रिश्ते में गुस्सा और शक बढ़ने लग जाए तो समझना चाहिए उस रिश्ते का अंत नजदीक है। दुनिया में छोड़ने जैसा कुछ है तो दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दो। सिर्फ सांसे चलते रहने को ही जिंदगी नहीं कहते आंखों में कुछ ख्वाब और दिल में उम्मीदें होना भी जरूरी है। रिश्तों की कीमत क्या होती है यह तो रिश्ते निभाने वालों से पूछो। आजकल संस्कार नहीं है समाज में, जरा झांक के देखो, पति पत्नी में झगड़ा, सास से झगड़ा, मां बेटे में झगड़ा ,बहन से झगड़ा, पड़ोसी से झगड़ा, क्या यही परिवार है, क्या यही संस्कार है। एक बेटा कितना भी दौलतमंद बन जाए किंतु मां-बाप का कर्ज कभी नहीं चुका सकता है। कोई व्यक्ति दूसरे का अपमान क्यों करता है। क्या आपने कभी विचार किया है? वैसे तो हम भी बिना कारण बहुतों का अपमान करते है। हमारा अपना अपमान भी बहुत बार होता है। संसार का सारा व्यवहार एक दूसरे का अपमान करने पर टिका है। जो भी बलवान है वह निर्बल का अपमान करता है। जो अपमानित महसूस करता है उसको लगता है जैसे मेरी आत्मा कुचली गई हो। वह मन से रोगी बन जाता है। हम किसी का अपमान क्यों करते हैं? क्या किसी की निर्बलता सिद्ध करने के लिए। दुनिया में सुख और खुशी चाहिए तो आदर्श और परफेक्ट बनना बंद कर दे। और अपनी रफ्तार से अपनी मौज में बहते रहे। सारांश की भाषा में मुनि ने कहा "सीधे इंसान को कभी धोखा मत देना, क्योंकि सीधे इंसान का जवाब ऊपर वाला अपने तरीके से देता है।इसलिए व्यक्ति को किसी अपमान न करते हुए आपसी सौहार्द प्रेमपुर्व जीवन जीना चाहिए।

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