यथार्थ का बोध रहे - आचार्य महाश्रमण

धर्मेन्द्र कोठारी | 01 Sep 2021 01:43

  • पूज्य प्रवर ने मुमुक्ष गौतम को प्रदान की मुनि दीक्षा 
  • संवत्सरी के संदर्भ में गुरूदेव द्वारा धर्माराधना की प्रेरणा

दैनिक भीलवाड़ा न्यूज- महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण के पावन सान्निध्य में पर्युषण महापर्व का 4 सितम्बर से आगाज हो रहा है। धर्म आराधना की दृष्टि से चातुर्मास में पर्युषण का समय चारित्र आत्माओं और गृहस्थों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। गुरुकुलवास में पर्युषण पर्व आराधना महाशिविर है जिसमें प्रवचन, त्याग, तप, ध्यान, स्वाध्याय के साथ ही अखंड जाप की अखंड ज्योति जलेगी। आठ दिनों तक उपवास, पौषध, सांयकालीन सामूहिक प्रतिक्रमण आदि का क्रम चलता है। क्षमापना दिवस पर इसकी संपन्नता होती है। आचार्यप्रवर ने पर्युषण के संदर्भ में विशेष धार्मिक आराधना की प्रेरणा प्रदान की। आज सूर्योदय की बेला में शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण ने मुमुक्षु गौतम (बिरमावल) को मुनि दीक्षा प्रदान की।

ठाणं सूत्र पर आधारित धर्म देशना देते हुए आचार्यश्री ने कहा यह संसार दो तत्त्व जीव-अजीव में समाविष्ट हो जाता है। आत्मा पर राग द्वेष के बंधन न बने, हम आत्मा के परिणमन में रह सके ये हमारे लिए ग्रहणीय है। परिणमन के सिद्धांत अनुसार अजीवों में भी परिणमन होता है। विज्ञान द्वारा भी विशेष ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। अतीन्द्रीय ज्ञान के बिना भी मति, श्रुत ज्ञान इतने पावरफुल होते है कि उनके द्वारा अनेक गहरी बातें जानी जा सकती है। विज्ञान और अध्यात्म की तुलना उचित नहीं है, दोनों के उद्देश्य, मार्ग भिन्न है। सत्य की खोज के संदर्भ मे कुछ अंशों में विज्ञान और अध्यात्म में समानता हो सकती है। यथार्थ का बोध हो, जो जैसा है उसे वैसा ही जानने का प्रयास रहे तो व्यक्ति सम्यक पथ पर चल सकता है।


 


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