भौतिकता के लिए न गंवाएं साधना - आचार्य महाश्रमण
दैनिक भीलवाड़ा न्यूज- प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में मंत्र पाठ का, जप का महत्व रहा है। मंत्र जप के प्रकम्पन हमारी चेतना एवं वातावरण में शुद्धि का कार्य करते हैं। अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण के पावन सान्निध्य में पर्युषण महापर्व के अंतर्गत आज जप दिवस मनाया गया। आचार्य प्रवर के मुख्य प्रवचन से पूर्व मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभा, साध्वीवर्या संबुद्धयशा ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी। प्रवचन के दौरान पूज्य प्रवर ने साधु-साध्वियों के समक्ष तत्वज्ञान के प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किए फिर स्वयं प्रश्नों को समाहित कर प्रेरणा प्रदान की। जप दिवस पर गुरूदेव द्वारा नमस्कार महामंत्र का जप भी करवाया गया।
भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का आख्यान करते हुए गुरूदेव ने कहा- भगवान महावीर का जीव नयसार के भव के पश्चात 9वें ईशान देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से फिर मनुष्य भव और फिर देवलोक इस प्रकार भ्रमण कर 18 वें भव में त्रिपिष्ठ वासुदेव के रूप में भगवान महावीर के जीव का जन्म हुआ। जहां प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव को जीत कर वें तीन खण्ड के अधिपति बने। प्रेरणा देते हुए आचार्यप्रवर ने आगे कहा कि जो साधक संयम, शील धर्म का पालन करता है और फिर भौतिक सुखों के लिए उन्हें छोड़ देता है वह मानों करोड़ों रुपये में कोड़ी खरीदने जैसा है। अपनी साधना को किसी भौतिक प्राप्ति के लिए गंवा देना थोड़े के लिए बहुत को खो देना है। जप दिवस पर यह ध्यान दे कि आत्म शुद्धि के लिए जप किया जाना चाहिए। जप आत्म निर्जरा का एक बहुत बड़ा साधन है।
11 सितंबर को संवत्सरी महापर्व
आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में पर्युषण के आठवें दिन संवत्सरी महापर्व मनाया जाएगा। संवत्सरी जैन धर्म का वार्षिक पावन पर्व है। इस दिन आत्मालोचन कर वर्ष भर में हुए दोषों का प्रायश्चित किया जाता है। तेरापंथ नगर में आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में प्रातः 7.00 बजे से वर्चुअल कार्यक्रम प्रारंभ हो जाएगा जो सायं लगभग 5 बजे तक चलेगा। जिसमे आचार्य श्री मुख्य रूप से भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का वर्णन करेंगे। साधु- साध्वियों द्वारा भी गणधरवाद, निन्हववाद, जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों का इतिहास, तेरापंथ के पूर्वाचार्य आदि विषयों पर वक्तव्य होंगे।
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