संवत्सरी पर करे मन में क्षमा धारण - आचार्य महाश्रमण

धर्मेन्द्र कोठारी | 11 Sep 2021 04:09

दैनिक भीलवाडा न्यूूज- शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण के पावन सान्निध्य में पर्युषण महापर्व का शिखर दिवस संवत्सरी पर्वाधिराज मनाया गया। जैन शासन का यह पावन पर्व आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। आत्मालोचन के का यह विशिष्ट पर क्षमा की प्रेरणा देता हुआ मैत्री के भावों का संचार करता है। तेरापंथ नगर के महाश्रमण सभागार में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य प्रवर ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा एवं तेरापंथ के पूर्वाचार्यों पर आख्यान दिया। साधु-साध्वियों ने भी विविध विषयों पर वक्तव्य दिया।

मंगल उद्बोधन में आचार्य श्री ने कहा आज संवत्सरी का पहला पावन दिन है। यह दिन अपने आप में महत्वपूर्ण है। वर्ष भर में एक दिन यह संवत्सरी आती जो अध्यात्म की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। यह महापर्व धार्मिक आराधना, क्षमा, मैत्री से जुड़ा हुआ है। आज के दिन मन में किसी प्रकार की गांठ नही रहनी चाहिए। यह दिन मन की गांठे खोलने का, वैर भाव को धोने का दिन है। प्रतिक्रमण कर चौरासी लाख जीव योनियों से भी संवत्सरी के दिन क्षमा मांगी जाती है। व्यक्ति को मन में क्षमा धारण कर द्वेष की कलुषता को धो देना चाहिए। आज के दिन भी अगर किसी के प्रति मन में वैर भाव रह जाता है तो हमारा सम्यक्त्व तक उससे जा सकता है। सबसे खमतखामणा कर वैर से मुक्त होकर मैत्री का भाव हमारे भीतर रहे यह इस पर्व का संदेश है।

आचार्य श्री ने आगे कहा कि जैनशासन के अनुयायियों में अहिंसा, संयम तप के संस्कार जीवन चर्या में रहने चाहिए। मन में प्राणी हिंसा से बचने की भावना हो। गृहस्थ है तो भी जितना हो सके हिंसा से बचाव रखे। खानपान में भी शुद्धता रहे, कही बाहर जाए होटल आदि में तो भी नॉनवेज का किसी रूप में सेवन न हो। बच्चे, युवापीढ़ी खास रूप से ध्यान दे कि पैकेट बंद पदार्थों में किसी प्रकार से नॉनवेज का उपयोग न हो। नशा आदि का त्याग भी संयम से जुड़ा हुआ है। जैन धर्म का महामंत्र है नवकार महामंत्र। हर जैनी को यह कंठस्थ रहना चाहिए, हृदय में धारण रहना चाहिए। बचपन से ही यह संस्कार बच्चों में दिए जाने चाहिए कि नमस्कार महामंत्र का रोज पाठ करे। जीवन शैली में जैनत्व का भाव मुखर होता रहे यह अपेक्षा है। इस अवसर पर मुख्यमुनि महावीर कुमार, मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभा का विशेष उद्बोधन हुआ। साध्वीवर्या संबुद्धयशा ने 'आत्मा की पोथी' गीत का संगान किया। मुनि उदित कुमार, मुनि मोहजीत कुमार, मुनीम प्रसन्न कुमार, मुनि रमेश कुमार, मुनि संबोध कुमार, साध्वी विद्युतप्रभा, साध्वी संवरयशा, साध्वी कुशलप्रभा, समणी प्रणवप्रज्ञा ने जैन शासन, इतिहास आदि विषयों पर वक्तव्य दिया। संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

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