छात्रों पर पढ़ाई के दबाव की महामारी: तेजी से बढ़ती ट्यूशन संस्कृति हमारे बच्चों के लिए घातक साबित न हो

देवेन्द्र सिंह राणावत | 25 Jun 2022 01:26

दैनिक भीलवाड़ा न्यूज। स्कूलों-कॉलेजों में तो शिक्षा का भरपूर व्यावसायीकरण हो ही रहा है, इनसे बाहर भी निजी ट्यूशन के रूप में शिक्षा के जरिए धनार्जन का धंधा आज धीर-धीरे काफी जोर पकड़ चुका है। आजकल एल.के.जी और यू.के.जी में पढने वाले बच्चों को भी ट्यूशन की जरूरत पड़ने लगी है। हालांकि ऐसा नहीं है कि ट्यूशन का ये चलन अकस्मात् जन्मा हो, अध्यापकों द्वारा बच्चों को निजी ट्यूशन देने का कार्य तो काफी पूर्व से किया जाता रहा है लेकिन, विगत कुछ वर्षों से निजी ट्यूशन के इस चलन में काफी वृद्धि देखने को मिल रही है. दरअसल चीनी सरकार ने वहां के तेजी से बढ़ते शैक्षणिक ट्यूशन सेक्टर पर व्यापक और कठोर कार्रवाई की घोषणा की है। नई नीति के तहत छुट्‌टी के दिन ट्यूशन क्लास चलाने की मनाही होगी। माता-पिता और छात्रों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे निजी ट्यूशन के जरिए अतिरिक्त कमाई करने वाले शिक्षकों की शिकायत करें। चीन भारत के लिए नीति निर्माण का पैमाना नहीं है। फिर भी भारत में यह तो मानना होगा कि ट्यूशन पर बहुत जोर देना यहां भी समस्या है। हम बच्चों को पागल कर देते हैं। उनपर ऐसी परीक्षाओं के लिए दबाव बनाते हैं जो उनके हुनर की सच्ची परीक्षा नहीं लेते और सिलेक्शन की लॉटरी की तरह काम करते हैं।

वैसे ट्यूशन लेने वाले इन छात्रों में उच्च शिक्षा के छात्र कम हैं, अधिक छात्र स्कूली शिक्षा से ही सम्बंधित हैं. ट्यूशन के प्रति लोगों के इस आकर्षण का ही परिणाम है कि लोगों के घर खर्च में अब ट्यूशन की हिस्सेदारी हो गई है. लोगों में ट्यूशन के प्रति बढ़ रहे इस आकर्षण का स्वाभाविक रूप से अध्यापकों द्वारा लाभ लेने की कामयाब कोशिश की जा रही है. इसके लिए वे विभिन्न प्रकार के उपाय अपना रहे हैं. कहीं अध्यापक स्कूल के बाद निजी ट्यूशन कक्षा चला रहे हैं तो तमाम अध्यापक ऐसे भी हैं जो घर-घर जाकर भी ट्यूशन देने को तैयार हैं. बहुत से अध्यापक बच्चों को कक्षा और विषय के अनुसार समूह में विभाजित कर अपने घर बुलाकर भी ट्यूशन देते हैं तो कितने अध्यापक जिनकी विश्वसनीयता और साख थोड़ी स्थापित हो गई है, वे अपनी शर्तों जैसे की सप्ताह में दो या तीन दिन वो भी कोई एक विषय ही पढ़ाना तथा इसकी भी अत्यधिक फीस लेना आदि, पर ट्यूशन दे रहे हैं. इनके अलावा और भी तमाम तरीके हैं जिनके जरिये अध्यापकों द्वारा बच्चों को ट्यूशन दी जा रही है

ट्यूशन क्लास भारत में दशकों से हैं। मैं खुद पहले बचपन में पड़ोस की आंटी के पास ट्यूशन जाता था, जो सब्जियां काटते हुए होमवर्क में हमारी मदद करती थीं। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। सब्जी काटने वाली आंटी छोटा उपक्रम थीं। आज बड़ी एजुकेशन कंपनियां हैं। कई तो अरबों डॉलर के मूल्य की हैं। वे तकनीक के जरिए भारत के हर परिवार में पहुंच सकती हैं। वे जल्द ही संस्थागत होकर ट्यूशन को उस हद तक मुख्यधारा में ला सकती हैं, जहां स्थिति ट्यूशन के पागलपन जैसी हो जाएगी। सभी माता-पिता बच्चों को 'अतिरिक्त' मदद दिलाने के लिए दबाव महसूस करेंगे। स्कूल पर्याप्त नहीं होंगे, स्कूल के शिक्षक पर्याप्त नहीं होंगे। ऐप के जरिए विशेषज्ञ ट्यूटर विकल्प नहीं, जरूरत बन जाएंगे। बच्चे स्कूल के बाद घंटों ट्यूशन में बिताएंगे। खेलते हुए बीतने वाली शाम बीते कल की बात हो जाएंगी।

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